काठमांडू । विश्वकर्मा पूजा हर साल बड़े ही हर्षोल्लास के साथ आश्विन १ गते को मनाई जाती है। इस दिन हिंदू धर्म के दिव्य वास्तुकार कहे जाने वाले भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है। विश्वकर्मा पूजा हर साल बंगाली महीने भद्र के आखिरी दिन पड़ता है जिसे भद्र संक्रांति या कन्या संक्रांति भी कहा जाता है। जानिए कौन थे विश्वकर्मा और क्यों मनाया जाता है ये त्योहार...
समुद्र मंथन से हुआ था जन्म? माना जाता है कि प्राचीन काल में सभी का निर्माण विश्वकर्मा ने ही किया था। 'स्वर्ग लोक’, सोने का शहर 'लंका’ और कृष्ण की नगरी ’द्वारका’, सभी का निर्माण विश्वकर्मा के ही हाथों हुआ था। कुछ कथाओं के अनुसार भगवान विश्वकर्मा का जन्म देवताओं और राक्षसों के बीच हुए समुद्र मंथन से माना जाताहै।
पूरे ब्रह्मांड का किया था निर्माण हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार उन्होंने पूरे ब्रह्मांड का निर्माण किया है। पौराणिक युग में इस्तेमाल किए जाने वाले हथियारों को भी विश्वकर्मा ने ही बनाया था जिसमें ’वज्र’ भी शामिल है, जो भगवान इंद्र का हथियार था। वास्तुकार कई युगों से भगवान विश्वकर्मा अपना गुरू मानते हुए उनकी पूजा करते आ रहे हैं।
क्यों मनाते हैं विश्वकर्मा पूजा?
देश में शायद ही ऐसी कोई फैक्टरी, कारखाना, कंपनी या कार्यस्थल हो जहां आश्विन १ को विश्वकर्मा की पूजा नहीं की जाती। वेल्डर, मकैनिक और इस क्षेत्र में काम कर रहे लोग पूरे साल सुचारू कामकाज के लिए भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते हैं। नेपाल, भारत एवं अन्य देशों में भी खास कर इस त्योहार को आश्विन १ गते (१७ सितंबर) को मनाया जाता है।
कैसे होती है पूजा–अर्चना?
इस दिन सभी कार्यस्थलों पर भगवान विश्वकर्मा की तस्वीर या मूर्ति की पूजा होती है। हर जगह को फूलों से सजाया जाता है। भगवान विश्वकर्मा और उनके वाहन हाथी को पूजा जाता है। पूजा–अर्चना खत्म होने के बाद सभी में प्रसाद बांटा जाता है। कई कंपनियों में लोग अपने औजारों की भी पूजा करते हैं जो उन्हें दो वक्त की रोटी देती है। काम फले–फूले इसके लिए यज्ञ भी कराए जाते हैं।