दुनिया में सबसे प्रताडित अल्पसंख्यक समुदाय माने जा रहे म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमानों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह जिस भी देश में शरण ले रहे हैं, वहां उन्हें हमदर्दी की बजाय आंतरिक सुरक्षा के खतरे के तौर पर देखा जा रहा है । बेहद गरीब, वंचित रोहिंग्या समुदाय पर आतंकवादियों से कनेक्शन का आरोप लगता रहा है. इसी वजह से अन्य देश भी इन्हें शरण देने को राजी नहीं । नेपाल के राजधानी काठमाण्डू, कपन लगायत के ईलाकों में अवैध रुपसे रह रहे करीब २००० रोहिंग्या मुसलमानों को आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बताया जा रहा है ।
नेपाल सरकार के सामने २ हजार रोंहिग्या मुस्लिमों की रोजी–रोटी से कहीं बड़ा सवाल देश की सुरक्षा का है, जो सर्वोपरि है. सरकार को रोटी, कपड़ा और मकान की दिक्कतों से जूझते रोहिंग्या आबादी के आतंकी संगठनों के झांसे में आसानी से आ जाने की आशंका है । पाकिस्तान से आपरेट कर रहे टेरर ग्रुप इन्हें अपने चंगुल में लेने की साजिश में लगे हो सकते है ।
ऐसे में नेपाल जनता पार्टी के महासचिव खेमनाथ आचार्य ने रोहिंग्या मुसलमानों को नेपाल के लिए खतरा बताते हुए उन्हें जल्द से जल्द वापस भेजना चाहिए बताया है ।
उन्होंने कहा, “रोहिंग्या के आतंकवादी समूहों से संपर्क की भी खबरें अन्तर्राष्ट्रिय मीडिया में आ चुकी हैं । इनको देश में न रखा जाए । इसके समाधान के लिए कूटनीतिक और बाँकी प्रयास किए जाएं लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ कोई समझौता नहीं किया जाए ।”
साथ ही साथ महासचिव आचार्य ने कहा “हाल ही में नेपाल कम्युनिष्ट पार्टी एमाले के पार्टी प्रवेश कार्यक्रम में बडी मात्रा में रोहिंग्या मुसलमानों को देखा गया था । देश के बडे राजनीतिक दल के साथ रोहिंग्या मुसलमानोंका कनेक्शन शंकास्पद व देश के लिए खतरा है ।”
आखिर कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान?
म्यांमार के रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय को दुनिया का सर्वा्धिक प्रताडित अल्पसंख्यक समुदाय माना जा रहा है. रोहिंग्या सुन्नी मुस्लिम हैं, जो बांग्लादेश के चटगांव में प्रचलित बांग्ला बोलते हैं. अपने ही देश में बेगाने हो चुके रोहिंग्या मुस्लिमों को कोई भी देश अपनाने को तैयार नहीं. म्यांमार खुद उन्हें अपना नागरिक नहीं मानता. म्यांमार में रोहिंग्या की आबादी १० लाख के करीब है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक करीब इतनी ही संख्या में रोहिंग्या बांग्लादेश, भारत, पाकिस्तान सहित पूर्वी एशिया के कई देशों में शरण लिए हुए हैं ।
रोहिंग्या समुदाय १५वीं सदी के शुरुआती दशक में म्यांमार के रखाइन इलाके में आकर बस तो गया, लेकिन स्थानीय बौद्ध बहुसंख्यक समुदाय ने उन्हें आज तक नहीं अपनाया है ।
म्यांमार में सैन्य शासन आने के बाद रोहिंग्या समुदाय के सामाजिक बहिष्कार को बाकायदा राजनीतिक फैसले का रूप दे दिया गया और उनसे नागरिकता छीन ली गई. २०१२ में रखाइन में कुछ सुरक्षाकर्मियों की हत्या के बाद रोहिंग्या और बौद्धों के बीच व्यापक दंगे भड़क गए । तब से म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ हिंसा जारी है ।