प्यार वाला हार्मोन ऑक्सीटोसिन सामाजिक माहौल में बेहतर बनाने की जगह महिलाओं की भावनाओं को बढ़ा देता है। यानी वे जो भी महसूस कर रही होती हैं, चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक, उसके प्रभाव को बढ़ा देता है। खासकर नई सामाजिक परिस्थितियों में वे बचैन हो जाती हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के शोध में यह दावा किया गया है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक सामाजिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेते वक्त भी मस्तिष्क में प्यार वाले हार्मोन ऑक्सीटोसिन का उत्सर्जन होता है। इस शोध में नकारात्मक सामाजिक अनुभव वाले चूहों को लिया गया। नई सामाजिक परिस्थिति में जब उन्हें ऑक्सीटोसिन दिया गया तो उनकी बेचैनी बढ़ गई। पर जैसे ही इसका उत्सर्जन रोका गया, वह नए सामाजिक अनुभव के लिए और ज्यादा खुल गया। पर ऑक्सीटोसिन का प्रभाव तीस मिनट के भीतर पड़ता है न कि बचैनी और डिप्रेशन रोकने वाली दवाओं की तरह, जिसमें हफ्तों लगते हैं।
महिलाओं पर इसका प्रभाव ज्यादा पड़ता है। यूसी डेविस के डॉ ब्रेन ट्रेनर के मुताबिक अब तक माना जाता था कि यह हार्मोन सामाजिक अनुभवों को बेहतर बनाता है। पर ऐसा नहीं है। अगर महिला का सामाजिक अनुभव नकारात्मक होगा जैसे वह बुलिंग की शिकार रही होंगी, तो ऑक्सीटोसिन उनकी बेचैनी बढ़ाएगा।
पर हार्मोन कम होते ही वह सामाजिक परिस्थितियों में बेहतर ढंग से पेश आएंगी। पुरुषों पर इसका प्रभाव अलग तरीके से होता है। ऑक्सीटोसिन उन्हें सामाजिक रूप से ज्यादा सक्रिय बना देता है। वहीं बुलिंग के शिकार पुरुष अनियमित तरीके से व्यवहार करते हैं।