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Sunday, 28 May 2017

8 साल की उम्र में कंठस्‍थ कर लिया था वेद

गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रामचरित मानस में लिखी चौपाई ’ज्ञान की पंथ कृपाण की धारा’ यानी ज्ञान को प्राप्‍त करना दोधारी तलवार पर चलने जैसा होता है आपने आप में सब कुछ कहती है। ज्ञानार्जन करने के लिए व्‍यक्‍ति को हर सीमा के पार जाना होता है। यदि मन, बुद्धि जिज्ञासु हो तो ज्ञानार्जन के लिए कैसी भी सीमाएं हों ज्ञानी व्‍यक्ति सभी सीमाओं के परे जाकर ज्ञान प्राप्‍त कर ही लेता है। भारतीय सभ्‍यता और संस्‍कृति के भीतर ऐसा ही एक जिज्ञासु हुआ नाम था शंकर। आज पूरा विश्‍व उन्‍हें आदि गुरु शंकराचार्य के नाम से जानता है। आदि गुरू शंकराचार्य का जन्म केरल के कालडीÞ नामक ग्राम मे हुआ था। वह अपने ब्राह्मण माता(पिता की एकमात्र सन्तान थे। बचपन मे ही उनके पिता का देहान्त हो गया।
 
आदि गुरु शंकराचार्य 



आठ वर्ष की उम्र में कंठस्‍थ थे चारो वेद

आदि शंकराचार्य अद्वैत वेदांत के प्रणेता थे। उनके विचारोपदेश आत्मा और परमात्मा की एकरूपता पर आधारित हैं जिसके अनुसार परमात्मा एक ही समय में सगुण और निर्गुण दोनों ही स्वरूपों में रहता है। आठ वर्ष की उम्र में गृहस्‍थ जीवन को त्‍यागकर संन्‍यास जैसे जीवन का कठिन रास्‍ता अपनाने वाले इस बालक ने कई सालों तक पहाड़ों, जंगलों और कंदराओं में अपने गुरु की तलाश की। मध्‍य प्रदेश स्‍थित ओमकारेश्‍वर में उन्‍हें गुरु गोविंद योगी मिले। शंकराचार्य का जन्‍म आज से तकरीबन ढाई हजार साल पहले ठडड ई. में दक्षिण भारत के केरल में हुआ था।

सनातन धर्म की रक्षा के लिये की चार पीठों की स्‍थापना

शंकराचार्य ने पूरे भारत की यात्रा करते हुए देश में हिंदू धर्म का प्रचार किया। उन्‍होंने चार पीठो की स्‍थापना कर भारत को हिंदू दर्शन, धर्म और संस्‍कृति की अविरल सनातन धारा में पिरो दिया। उन्‍होंने आज जिस हिंदू धर्म का स्‍वरूप हमें दिखाई देता है वह शंकराचार्य का ही बनाया हुआ है। जब वे सात वर्ष के हुए तो वेदों के विद्वान, बारहवें वर्ष में सर्वशास्त्र पारंगत और सोलहवें वर्ष में उन्‍होंने ब्रह्मसूत्र( भाष्य रच दिया। उन्होंने शताधिक ग्रंथों की रचना शिष्यों को पढ़ाते हुए कर दी। भारतीय इतिहास में शंकराचार्य को सबसे श्रेष्‍ठतम दार्श्निक कहा गया। उन्‍होंने अद्वैतवाद को प्रचलित किया।

आदि गुरु ने की दुर्लभ ब्रह्मसूत्र की रचना

उपनिषदों, श्रीमद्भगवद गीता एवं ब्रह्मसूत्र पर ऐसे भाष्य लिखे जो दुर्लभ हैं। इसके अलावा उपनिषद, ब्रह्मसूत्र एवं गीता पर भी उन्‍होंने लिखा। वे अपने समय में उत्कृष्ट विद्वान एवं दार्श्निक थे। आज भी दुनिया में उनके जैसा अद्वैत सिद्धान्त दुर्लभ है। इसकी कोई काट नहीं है। खुद भारतीय सभ्‍यता के इतिहास में शंकराचार्य जैसा विद्वान नहीं हुआ। भारत में सही मायनों में उनके बाद कोई दार्श्निक ही नहीं रहा। बाद में जितने भी दार्श्निक हुए उन पर शंकराचार्य का प्रभाव साफ देखा जा सकता है।

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