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Saturday, 16 December 2017

राम सेतु पर कभी पैदल चलते थे लोग?

एक अमरीकी टीवी कार्यक्रम के प्रोमो ने भारत में 'रामसेतु' की राजनीति को फिर गरमा दिया है. अमरीका के साइंस चैनल ने 11 दिसंबर को भारत-श्रीलंका को जोड़ने वाले पत्थर के पुल 'रामसेतु' पर कार्यक्रम का ट्विटर पर प्रोमो जारी किया.


प्रोमो के मुताबिक 'रामसेतु' के पत्थर और रेत पर किए गए टेस्ट से ऐसा लगता है कि पुल बनाने वाले पत्थरों को बाहर से लेकर आए थे और 30 मील से ज़्यादा लंबा ये पुल मानव निर्मित है.

भगवान राम की कथा महाकाव्य 'रामायण' में लिखा है कि भगवान राम ने लंका में राक्षसों के राजा रावण की क़ैद से अपनी पत्नी सीता को बचाने के लिए वानर सेना की मदद से इस पुल का निर्माण किया था. भारत के अलावा दक्षिण पूर्व एशिया में रामायण बेहद लोकप्रिय है.

साइंस चैनल के इस प्रोमो के आने के बाद रामसेतु को मानने वाले, नेता और राजनीतिक पार्टियां बहस में कूद पड़ी हैं.


भाजपा के ट्विटर हैंडल ने ट्वीट को साझा करते हुए कहा कि जहां कांग्रेस सरकार ने सुप्रीम कोर्ट ने हलफ़नामा दायर करके रामसेतु के अस्तित्व को नकारा था, वैज्ञानिकों ने भाजपा के स्टैंड की पुष्टि की है.

केंद्रीय कपड़ा और सूचना और प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी ने ट्वीट किया, 'जय श्री राम'. भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने भी इसका स्वागत किया.

रामसेतु पर बहस नई नहीं है. साल 2005 में विवाद उस वक्त उठा जब यूपीए-1 सरकार ने 12 मीटर गहरे और 300 मीटर चौड़े चैनल वाले सेतुसमुद्रम प्रोजेक्ट को हरी झंडी दी.

ये परियोजना बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के बीच समुद्री मार्ग को सीधी आवाजाही के लिए खोल देती लेकिन इसके लिए 'रामसेतु' की चट्टानों को तोड़ना पड़ता.

प्रोजेक्ट समर्थकों के मुताबिक, इससे जहाज़ों के ईंधन और समय में लगभग 36 घंटे की बचत होती क्योंकि अभी जहाज़ों को श्रीलंका की परिक्रमा करके जाना होता है.

हिंदू संगठनों का कहना है कि इस प्रोजेक्ट से 'रामसेतु' को नुकसान पहुंचेगा. भारत और श्रीलंका के पर्यावरणवादी मानते हैं कि इस परियोजना से पाक स्ट्रेट और मन्नार की खाड़ी में समुद्री पर्यावरण को नुक़सान पहुँचेगा.
- BBC hindi

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