काठमाण्डौ ÷ हिन्दू स्वयंसेवक संघ का संघ शिक्षा वर्ग, प्रथम वर्ष प्राथमिक शिक्षा वर्ग आगामी १५ ज्येष्ठ से असार ५ तक विराटनगर में प्रारम्भ होगा । यह वर्ग विराटनगर, कटहरी स्थित अनुराग अगरबत्ती उद्योग मे आयोजन किया जा रहा है । के २० दिन तक चलने वाले इस वर्ग तैयारी को लिए सम्भाग प्रचारक श्री प्रह्लाद रेग्मी, सह–राष्ट्रिय कार्यवाह श्री महेन्द्र प्रसाद साह, जिला कार्यवाह ,ने कार्यक्रम की तैयारियों का जायजा लिया । स्थानीय स्वयं सेवकों को आवश्यक दिशा निर्देश दिए।
वर्गमे भाग लेने हेतु वर्ग प्रवेश शुल्क ८०० रुपैया साथ हि साथ दैनिक उपभोग्य सामग्री (तेल, मंजन, ब्रश, शिशा,कंगही, रेजर,साबुन, तन्ना, थाल, कचौरा, कलम,डायरी आदि),एवं पूर्ण गणवेश आवश्यक है । गणवेश वर्गमे सःशुल्क उपलब्ध रहेगा । साथ ही साथ स्थास्थ परिक्षण रिपोर्ट, २ प्रति अपने सामग्री की सूची । मूल्यवान चिजें जैसे सोने की चैन, मोवाईल,क्याम्रा, ल्यापटप आदि लाना वर्जित है । लाया जाने पर कार्यालयमे जमा कराना परेगा । अन्य आवश्यकताओं मे सामान्य के लिए डा. हेडगेवार जी की जीवनी अध्ययन कर आना, १० वीं क्लास उतिर्ण वा अध्ययनरत, १५ बर्ष पुरा हुआ एवं बिषेश प्रौढ के लिए ४० वर्ष से ६५ वर्ष के विचका होना अनिवार्य है ।
वैसे तो ये वर्ग साल भर में कभी भी हो सकते हैंस पर गरमी की छुट्टियों के कारण अधिकांश वर्ग इन्हीं दिनों होते हैं । ज्ञढद्दछ में जब संघ प्रारम्भ हुआ, तो संघ के संस्थापक डा‘. हेडगेवार स्वयंसेवकों को सैन्य प्रशिक्षण देना चाहते थे । उनकी सोच थी कि अनुशासन तथा समूह भावना के निर्माण में यह सहायक हो सकता है पर वे स्वयं इस बारे में कुछ नहीं जानते थे । इसलिए वे अपने सम्पर्क के कुछ पूर्व सैनिकों को बुलाकर रविवार की परेड में यह प्रशिक्षण दिलवाते थे । इसीलिए प्रारम्भ के कुछ वर्ष तक संघ में सेना की तरह अंग्रेजी आज्ञाएं, क्रा‘स बैल्ट,कंधे पर संघ का बैज आदि प्रचलित थे । ऐसी ही वेशभूषा पहने डा‘. हेडगेवार का एक चित्र भी बहुप्रचलित है । संघ के विकास और विस्तार के साथ क्रमशः अंग्रेजी के बदले संस्कृत आज्ञाओं का प्रचलन हुआ .
संघ स्थापना के कुछ समय बाद डा‘. हेडगेवार को यह भी ध्यान में आ गया कि संगठन के विस्तार के लिए सप्ताह में एक दिन और कुछ घंटे का प्रशिक्षण काफी नहीं है । अतः जून ज्ञढद्दठ से ‘मोहिते के बाड़े’ वाले संघ स्थान पर द्धण् दिवसीय प्रशिक्षण की व्यवस्था की गयी । इसमें सैन्य प्रशिक्षण के अलावा लाठी(काठी जैसी चीजें भी होती थीं । सुबह चार घंटे शारीरिक तथा दोपहर में बौद्धिक कार्यक्रम होते थे । इसी में से क्रमशः ‘संघ शिक्षा वर्ग’ का स्वरूप बना । पहले इन्हें ओ.टी.सी. (अ‘ाफिसर्स ट्रेनिंग कैम्प या अधिकारी शिक्षण वर्ग) कहते थे । इसी क्रम में आगे चलकर दस दिवसीय वर्ग को आई.टी.सी. (इन्स्ट्रक्टर ट्रेनिंग कैम्प) कहा गया । अब एक सप्ताह तक चलने वाले इन वर्गों को ‘प्राथमिक शिक्षा वर्ग’ कहते हैं।
काफी समय बाद संघ शिक्षा वर्ग की अवधि घण् से द्दछ और फिर द्दण् दिन की हो गयी । बीच में कुछ समय के लिए ज्ञछ दिन के प्रथम वर्ष तथा द्दछ दिन के द्वितीय वर्ष का प्रयोग भी हुआ । पर अब काफी समय से प्रथम और द्वितीय वर्ष के वर्ग द्दण् दिन के ही होते हैं । तृतीय वर्ष का वर्ग अब द्दछ दिन का होने लगा है । प्रथम वर्ष के वर्ग प्रान्त के अनुसार, द्वितीय वर्ष के क्षेत्र के अनुसार और तृतीय वर्ष का वर्ग एक साथ नागपुर में ही होता है । इसमें सभी स्वयंसेवकों को संघ के अखिल भारतीय स्वरूप का ज्ञान होता है । भिन्न(भिन्न भाषाओं वाले स्वयंसेवक जब द्दछ दिन एक साथ रहते हैं, तो अद्भुत अनुभव होते हैं । गत कुछ साल से विशेष वर्ग भी होने लगे हैं । इनमें प्रौढ़ तथा स्नातक वर्ग प्रमुख हैं । प्राथमिक वर्ग के बाद ही स्वयंसेवक द्दण् दिवसीय संघ शिक्षा वर्ग में जा सकता है ।
प्रशिक्षण वर्ग का स्वयंसेवक तथा संगठन दोनों को लाभ होता ह ै। वर्ग में आकर शिक्षार्थी पूरी तरह से संघ के वातावरण में डूब जाता है । संघ के सम्भाग से लेकर केन्द्रीय स्तर के वरिष्ठ कार्यकर्ता वहां उपलब्ध रहते हैं । वे सब भी वहीं रहते, खाते और अन्य गतिविधियों में शामिल होते हैं । उनके साथ औपचारिक तथा अनौपचारिक बातचीत में शिक्षार्थी की संघ संबंधी जानकारी बढ़ती है । उसके मन की जिज्ञासाओं का समाधान होता है । जो सदा उसके जीवन में लाभ देती है ।
इसके साथ ही प्रत्येक स्वयंसेवक में कुछ प्रतिभा छिपी रहती है । कोई अच्छा वक्ता हो सकता है, तो कोई लेखक । कोई अच्छा गायक हो सकता है, तो कोई खिलाड़ी । किसी में तर्कशक्ति प्रबल होती है, तो किसी में श्रद्धा और समर्पण । वर्ग के कार्यक्रमों में उसकी यह प्रतिभा प्रकट होती है । अनुभवी कार्यकर्ता इसे पहचानकर उसे विकसित करने का प्रयास करते हैं । इसका लाभ स्वयंसेवक को जीवन भर होता है ।
वर्ग में स्वयंसेवक की शारीरिक और मानसिक क्षमता बढ़ती है । इसका लाभ वर्ग के बाद उसकी शाखा को मिलता है । इससे शाखा की गुणवत्ता बढ़ती है तथा नये स्थानों पर शाखाओं का विस्तार होता है । वर्ग में सब एक साथ रहते, खेलते और खाते(पीते हैं । पड़ोसी स्वयंसेवक किस जाति और क्षेत्र का है, इससे कोई अंतर नहीं पड़ता । वह किसान है या मजदूर, वकील है या डा‘क्टर, छात्र है या व्यापारी, नौकरी करता है या बेरोजगार, धनी है या निर्धन,शिक्षित है या अशिक्षित, ये सब बातें गौण हो जाती हैं । सबके मन में यही भाव रहता है कि स्वयंसेवक होने के नाते हम सब भाई हैं । राष्ट्र माता हम सबकी माता है ।
वर्ग के अनुशासन और दिनचर्या का स्वयंसेवक के जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है । घर में वह अपने मन से सोता, जागता, खाता और रहता हैस पर वर्ग में वह धरती पर अपना बिस्तर लगाकर सबके साथ रहता है । प्रातः चार बजे से रात दस बजे तक की कठिन दिनचर्या का पालन करता है । अपने बर्तन और कपड़े स्वयं धोता है । भोजन अति साधारण और निश्चित समय पर होता है । वर्ग में प्रत्येक शिक्षार्थी को अपनी बारी आने पर भोजन वितरण भी करना होता है । इस प्रकार उनमें स्वावलम्बन की भावना का विकास होता है । इससे स्वयंसेवक जीवन के किसी क्षेत्र में कभी मार नहीं खाता ।